Best Tourist Places In Maharajganj: वन और नदियों के सुंदर झलक के लिए जरूर जाए इस जगह पर

Best Tourist Places In Maharajganj: अगर आप घूमने के शौकीन है तो महराजगंज जिला आपके लिए काफी अच्छा होने वाला है इसका मुख्य कारण यह है कि यह जिला एक तरफ नेपाल के बॉर्डर से जुड़ा हुआ है और वही दूसरी तरफ नेपाल से बहने वाली नदी त्रिवेणी ने महराजगंज और बिहार को एक बॉर्डर की तरह जोड़ रखा है। उत्तर में नेपाल और पूर्व दिशा से बिहार से सटा यह जिला अपने बहुत ही पुराने संस्कृति और इतिहास के लिए जाना जाता है।

अगर हम उत्तरप्रदेश के प्रमुख जिलो से इसकी दूरी को देखे तो यह जिला लखनऊ से लगभग 300 किलोमीटर और वही गोरखपुर से देखे तो इसकी दूरी मात्र 55 किलोमीटर है।महराजगंज को साल 1989 में गोरखपुर से अलग कर एक नया जिला बनाया गया था। महराजगंज जिले के खास होने का एक मात्र वजह इसका नेपाल बॉर्डर से सटे होना। यह जिला अपने संस्कृति,इतिहास और कई सारी रोमांच से भरी जगहों के लिए जाना जाता है।रोमांच से भरे कई टूरिस्ट स्पॉट जानने के लिए इस लेख को पूरा पढ़े।

सोहगीबरवां वन्य जीव अभ्यारण

सोहगीबरवां वन्य जीव अभ्यारण: यह अभ्यारण रोमांच से भरे चीज़ों को Explore करने तथा जंगल सफारी का लुफ्त उठाने वाले लोगो के लिए एक अच्छा ऑप्शन साबित हो सकता है।ऐसा लिए है कि नेपाल से सटे होने के कारण नेपाल के चितवन पार्क के भालू व गैंडा भी यहाँ देखने को मिलते है,इसके अलावा यहाँ दिखने वाले जानवरो की बात करे तो यहाँ टाइगर,सांभर हिरण,चीतल,जंगली बिल्ली के साथ साथ बहुत से अन्य जीव भी देखने को मिलते है।यह अभ्यारण महराजगंज जिले के निचलौल रेंज में पड़ता है।

स्थलाकृति और जलवायु

इस अभ्यारण की स्थलाकृति लगभग समतल है और समुंद्रतल से इसकी ऊंचाई औसत 100 मीटर है।इस जगह के ढलान की बात करे तो यह उत्तर से दक्षिण की ओर ढलान है।इस अभ्यारण में कई सारे झील,तालाब,दलदल और बड़ी घास की मैदान मौजूद है।इस जगह की जलवायु पूरे वर्ष सुखद रहती है।

अन्य आकषर्ण

इस अभ्यारण के रोमांचक जगहों में नागवा और सोनारी ब्लॉक में कई तालाब और झील तथा मधौलिया रेंज में महत्वपूर्ण घास के मैदान शामिल है जो पर्यटकों के लिए मनोरंजन का मुख्य स्पॉट है।

पंचमुखी शिव मंदिर

इस मंदिर की बात करे तो यह मंदिर महाराजगंज जिले के निचलौल क्षेत्र में है, यह मंदिर इटहिया पंचमुखी शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है।महाराजगंज जिले में स्थित यह धाम को लेकर मान्यता है कि 200 वर्ष पूर्व एक आम के पेड़ के नीचे खुदाई के दौरान पंचमुखी शिवलिंग एक किसान को प्राप्त हुआ था और तभी से यहां पर पूजन अर्चन की जाती है. सैकड़ो साल से यह मंदिर अपने भव्य रूप को लेकर श्रद्धालुओं के श्रद्धा का व्यापक केंद्र बना हुआ है.

एक अन्य मान्यता के अनुसार मानें तो पूर्व में राजा रतन सेन की नंदी गाय हर रोज अपना दूध भगवान भोले शंकर को अर्पण कर जाती थी. राजा को दूध नहीं मिलता था. राजा ने एक दिन सिपाहियों को नंदी गाय के पीछे लगाकर दूध कहां जाता है, इसकी सत्यता की जांच कराना शुरू किया. पता चला कि हर रोज नंदी गाय इसी जगह पर आकर पंचमुखी भगवान भोले शंकर को अपना दूध अर्पण कर चली जाती है. राजा को गुस्सा आया और राजा ने इस शिव रूपी पत्थर को खोजने और ले जाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उनकी कोशिश नाकाम हुई. स्थानीय लोगों की मदद से यहां पूजन अर्चन तभी से शुरू हुआ. जो सिलसिला आज भी सैकड़ों वर्षो से चलता आ रहा है. ऐसी मान्यता है कि यहां हर भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है।


यह मंदिर बहुत ही पुराना है और कई दशकों से यहां पर पूरे सावन माह तक भव्य मेला लगता है. यहां पर सिर्फ महाराजगंज के ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों के साथ दूसरे प्रदेशों और नेपाल के भी काफी श्रद्धालु आकर अपनी मन्नत पूरी करते हैं. ऐसी मान्यता है, जो भक्त देवघर में स्थित बाबा धाम नहीं जा पाता है, वह भक्त पंचमुखी भगवान भोलेनाथ के दर पर ही जाता है।

दर्जिनिया ताल

नेपाल राष्ट्र के हिमालय पर्वत की चोटियों से निकली नारायणी नदी के तट एवं सोहगीबरवा वन्य जीव प्रभाग अंतर्गत निचलौल रेंज के मनोरम वादियों के बीच स्थित दर्जिनिया ताल तेजी से विकसित हो रहा है।
अगर आप जंगल और जंगली जानवरों को देखने के शौकीन है, तो यह जगह आपके लिए बेहद खास है।

दर्जनिया ताल मतलब मगरमच्छों का बसेरा, जहां पर्यटन के अनगिनत रंग बिखरे हैं। चहुओर फैली हरियाली और नारायणी के लहरों के मधुर स्वरों के बीच जंगलों से घिरे एक ताल में अगर आपको एक साथ एक दो नहीं बल्कि दर्जनों मगरमच्छ दिख जाए, तो आपके यात्रा का आनंद शायद दोगुना हो जाएगा।

जिला मुख्यालय के अंतिम छोर पर बसा गांव भेडिहारी का कटान टोला जहां आदमी के साथ मगरमच्छ भी रहते हैं। चारों ओर से जंगलों से घिरे इस गांव से सटे एक ताल में करीब 450 मगरमच्छ रहते हैं। जिसे सुबह शाम आसानी से देखा जा सकता है। ताल में निर्मित टीलों पर अपने बच्चों के साथ खेलते व झुंडों में मगरमच्छ लुभावने लगते हैं।

जब मगरमच्छ अपने शिकार के लिए टीलों से पानी मे छलांग लगाते हैं, तो नजारा देखते ही बनता है। इसके अलावा ताल से थोड़ी दूरी पर बहने वाली नारायणी गंडक नदी, जिसमे डॉलफिन (गंगा चीता) व घड़ियाल भी देखे जा सकते हैं। वहीं निकट में नारायणी नदी है। जिसमें वन विभाग ने घड़ियालों के संरक्षण के लिए बीते वर्ष लखनऊ कुकरैल प्रजनन केंद्र से 42 मादा व 13 नर सहित 55 घड़ियालों को लाकर छोड़ा था।

लेहड़ा देवी मंदिर 

उत्तर प्रदेश महराजगंज जिले में स्थित लेहड़ा देवी मंदिर का ऐतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व है। महाभारत काल में पांडवों ने इस क्षेत्र में वक्त गुजारा था। फरेंदा-बृजमनगंज मार्ग पर आद्रवन जंगल के पास यह मंदिर है। मंदिर के बगल में बहने वाले प्राचीन पवह नाला का विशेष महत्व है। मान्यता है कि यहां मौजूद देवी की पिडी पर माथा टेकने वालों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। मंदिर लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है। अगल-बगल के जनपदों के साथ ही पड़ोसी राज्य बिहार व मित्र राष्ट्र नेपाल से भी बड़ी संख्या में लोग श्रद्धा के साथ शीश नवाते हैं।

लेहड़ा देवी का इतिहास

लेहड़ा देवी मंदिर (Lehra Devi Temple) का इतिहास काफी पुराना है। जनश्रुतियों व किवदंतियों के अनुसार मंदिर के आस पास पहले घना जंगल हुआ करता था। जंगल में ही मनोरम सरोवर के किनारे माता की पिडी स्थापित हुई थी। कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अपने अज्ञातवास का समय यहीं व्यतीत किया था। इसी सरोवर के किनारे युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्नों का जवाब देकर अपने भाइयों की जान बचाई थी। इस मंदिर की स्थापना द्रौपदी के साथ पांडवों ने की थी। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस मंदिर का उल्लेख अपने यात्रा वृतांत में किया है।

सोनाड़ी देवी मंदिर

चौक क्षेत्र में स्थित जिला मुख्यालय से पन्द्रह किलोमीटर उत्तर में दक्षिणी चौक रेंज के घने जंगलों के बीच स्थापित सोनाड़ी माता का मंदिर सैकड़ों साल से भक्तों के आस्था का केन्द्र है। वैसे तो इस स्थल पर प्रत्येक दिन श्रद्धालुओं के द्वारा पूजा पाठ किया जाता है। लेकिन शारदीय एवं वासन्तिक नवरात्र में इस स्थान पर भक्तों का ताता लगा रहता है। लोगों का मानना है कि जो भी सच्चे मन से मातारानी से अपनी इच्छा जाहिर करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। सोहगीबरवा वन्य जीव प्रभाग के अन्तर्गतदक्षिणी चौक के जंगल में स्थित सोनाड़ी माता का मंदिर भगवान बुद्ध के जमाने से श्रद्धा व विश्वास का केन्द्र बना हुआ है । ऐतिहासिक कहानी इस मंदिर के साथ जुड़ी है लोगों का कहना है कि निचलौल स्टेट के राजा रतनसेन की कुलदेवी माता सोनाड़ी ही थीं । जहां पर राजा का परिवार जाकर माता का पूजन करता था जिसका प्रमाण मंदिर से दो किमी उत्तर में स्थित जंगल हथिया हथिसार भी है । जहां पर राजा के हाथी घोड़े बांधे जाते थे ।

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